अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

बेला भोर तक फूला
 

खिलखिलाया
और बेला भोर तक फूला
मै नहीं भूला

वह नए अध्याय का
प्रारम्भ होना उर्मियों में
मौन शब्दों को समझना
फिर उलझना संधियों में

और सारे अर्थ गंधों के बताता
उर्वषी की
वेणियों में
गुंथा बेला भोर तक फूला
मैं नहीं भूला

एक अनजानी छुवन का
देह को देना दिलासा
हार कर भी नेह सारा
गुनगुनाना मंगलाशा

और गहरे मंत्र देता
समय के
अभ्यर्थिनी की
साँस में
अभिसिक्त बेला भोर तक फूला
मैं नहीं भूला

दृष्टि को आकार देकर
कल्पनाओं में पिघलता
एक होती नवकहन के
रूप में ढल कर निकलता

और आशीर्वचन देता
हृदय के
अनुगामिनी की
धमनिका में
मस्त बेला भोर तक फूला
मैं नहीं भूला

- निर्मल शुक्ल
१५ जून २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter