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आज खिली बेला
 

दिनकर संग लुकाछिपी
खेलतीं बदलियाँ
मोरों संग
बात करें पावसी पगलियाँ

ढकते ही सूरज का
सोने सा मुखड़ा
इतने में बरस गया
बदली का टुकड़ा

व्यर्थ करें
गर्जन घन कौंधती बिजलियाँ

बादल की बूँदें पी
आज खिली बेला
प्रमुदित मन देख रहे
मौसम का मेला

मधुवन में
घूम रहीं नाचतीं तितलियाँ

मेघ बंधु जाओ प्रिय
प्रेयसी की नगरी
हाथ जोड़ यक्ष खड़ा
राह कहे सगरी

मानस तक
हंस चलें साथ में बगुलियाँ

- ब्रजनाथ श्रीवास्तव
१५ जून २०१५

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