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सोया न बेला
 

जागी रही रात सपने लिये
सोया न बेला
सोया न मैं

पलकों पे यों बौर वन ने रखा
भीना वही दौर मन में दुखा
सपने मचलते थे
हिरने लिये

दीवार के पास थी चाँदनी
खिड़की में हँसती हुई रागिनी
सोने के चाँदी के
गहने लिये

यह पीर सागर-सी तर जाएँगे
बिखरे ये लम्हे सँवर जाएँगे
उसके लिये
मेरे अपने लिये

अश्विनी कुमार विष्णु
१५ जून २०१५

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