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बेला कहाँ खिले
 

नागफनी शोभित गमलों में
बेला कहाँ खिले

लिखी चमेली ने अँसुओं से
बाबुल को पाती
नहीं सँभाली जाती अब यह
ख़ुशबू की थाती
पानी में भी विष पीती हूँ
हवा घोंटती दम
किससे आस लगाऊँ, वैरी
है खुद ही मौसम
किस मन से खुशबू बिखराऊँ
अन्तर टीस पले

जुही कह रही थी सखियों से
मन की ये बातें
कली नोच लेते हैं दिन में
फिर सिसकी रातें
अपनी व्यथा कहूँ मैं किससे
कौन करेगा कम
सबके अपने-अपने किस्से
अपने-अपने ग़म

फिर भी धरम निभाउँगी मैं
जब तक साँस चले

लड़ी मोगरे की फिरती थी
जब वेणी में झूल
उसे चिढ़ा कर पीर दे गया
शहरी नकली फूल
हुआ मल्लिका का मन छोटा
आई उसे शरम
इतने दिन का पाला-पोसा
टूटा बड़ा भरम

गर्वहीन होकर क्या जीना
क्यों न प्राण निकले

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'
१५ जून २०१५

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