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बबूल हमारी बगिया के |
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दर्द-हर्ष अनुकूल हमारी बगिया के
मुसकाते हैं शूल हमारी बगिया के
रश्मि-रेख छूकर लौटी मन की देहरी
शीतल निर्मल हुई दहकती दोपहरी
काँटे खुलकर हँसे कि अब मौसम आया
बदले सभी उसूल हमारी बगिया के
जल,आँधी,तूफ़ान सभी से है यारी
रेतीली,खारी धरती है महतारी
दरबारी सूखी जमीन के राजकुँवर
खुले बंध के कूल हमारी बगिया के
सदा पीर के संवाहक ये शूल नहीं
साहस के अनुगामी हैं, प्रतिकूल नहीं
मृदुल भोर की स्मिति के संग गये सभी
कलुष, तमस, तृण, धूल हमारी बगिया के
नदी चंचला की धारा या अंगारे
मीत कंटकों के हो जाते हैं सारे
हमें न चिंता बौछारों, मझधारों की
कह कर गये बबूल हमारी बगिया के
- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
१ मई २०२० |
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