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          मेरे गाँव का एक बबूल

 
आस पास बंजर धरती है,
दूर दूर तक है सन्नाटा
खुद से घृणित हुआ है, तन में,
पत्ते से ज्यादा है काँटा
वर्षो सहता आया धूल

मरुथल में चुपचाप खड़े
जाड़ा, गर्मी, बरसात सहा
मगर किसी की निन्दा में,
अब तलक कभी कुछ नहीं कहा
अपने उसे गए है भूल

जबसे बनी दवा अंग्रेजी,
छाल घाव पर कौन लगाए ?
मीठे टूथपेस्ट के आगे
कड़वी दातुन कौन चबाये?
सब स्थितियाँ अब प्रतिकूल

- सूरज दूबे 'बागी'
१ मई २०२०

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