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रेत में है पाँव |
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रेत में हैं पाँव,
काँटों में ढँके तन
खिलखिलाते हैं हमेशा,
लोग पतली टहनियों से
अनगिनत हैं लाभ मेरे,
जड़, तनें, फल, पत्तियों से
बंजरों में भी
बनाते फिर रहे वन
शांतचित एकांतवासी
राह जग की देखते हैं
रोग सारे हैं ठिठकते
और घुटने टेकते हैं
पूजते हैं आज भी
मुझको सभी जन
पेड़ के नीचे हमारे
इक मधुर छाया रही है
बीच विकृतियों के अद्भुत
आस्तिक काया रही है
देखिए मत खाल मेरी
देखिए मन
- सन्नी गुप्ता 'मदन'
१ मई २०२० |
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