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मैं हूँ पेड़ बबूल
 
जीता सबके हित हरदम मैं
करता कभी न भूल
जहाँ रहूँ सब शुभ होता है
मैं हूँ पेड़ बबूल

ली मुझसे औषधियाँ तुमने
रोपे अपने प्राण
लाभ उठाया जी भर फिर भी
कसे व्यंग्य विष बाण
रहे जानते सबकुछ लेकिन
देखे तुमने शूल

चमकीले तुम दाँत दिखाते
किसके दम पर आज
गाल बजाकर डींग हाँकते
आती तनिक न लाज
छोटी-छोटी बातों को मैं
देता कभी न तूल

फली पत्तियाँ गोंद छाल संग
करूँ सदा उपकार
महापाप है मुझे काटना
फिर भी करते वार
पुण्य कर्म ही साथ निभाते
शेष सभी कुछ धूल

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'
१ मई २०२०

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