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          सहमा चुभा बबूल

 
दूर देश से आफत लाये मस्ती के सौदागर
वायुयात्रा सस्ती, सस्ते होटल भोगे जी भर
तापमान की जाँच हुई आँखों में झोंकी धूल
पोल खुली जब हुआ संक्रमण भारी पड़ती भूल
रोक न पाए उचित समय क्यों
पूछे सहम बबूल

तब लीगी; अब तब्लीगी हैं जन-जीवन के दुश्मन
सिर्फ मारना लक्ष्य हुआ आहों-आँसू का वंदन
नहीं मानते विनय-नियम भी मानव तन में दानव
ज्वर अवरुद्ध कंठ में चुभते जब प्राणांतक शूल
चाहे लेकिन बचा न पाये
होता दुखी बबूल

बेगैरत पत्थर बरसाते थूक रहे डॉक्टर पर
देख नर्स निर्वसन हो रहे शर्म देश को इन पर
बिन इलाज मरने दो फूँको छिड़क तुरत पेट्रोल
कहता लेकिन कर न सके
मन मारे मौन बबूल

- संजीव
१ मई २०२०

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