अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

रोप लें बबूल को
 
मन की जमीन पर
रोप लें बबूल को

काँटेदार वृक्ष के मध्यम आकार हैं
तन को आराम दे यदि वहाँ विकार हैं
हृदय में सहेज लें निंदक
द्विशूल को

गूँजी किलकारियाँ नेह भरे डाल की
औषधि हैं पत्तियाँ दस्त घाव बाल की
हर्ष भरे हाथ से समेटें
रसूल को

आम तो आम है कीकर अनुनाद है
पीत वर्ण फूल में स्मृति का अनुवाद है
क्षण भर विराम दें मुहावरी
तूल को

शुष्क त्वचा भाव में छाल का प्रदेह हो
अँखियों से नीर बहे पात लेपन नेह हो
पतला दतुअन करे वज्र दंतमूल को

अकेसिया कहें इसे है गुणों की खान ये
पात छाल चूर्ण का रोग शोधक पान ये
सहता मौन संत सा व्यंग्य
अयःशूल को

- ऋता शेखर ‘मधु’
१ मई २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter