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          हाँ मैं हूँ बबूल

 
जिसे न रोपे कोई जग में
खुद ब खुद उगता बढ़ता हूँ
नहीं धूप वर्षा की जरूरत
निकले जिसमें शूल ही शूल
हाँ मैं हूँ बबूल !

नहीं चाहिए खाद या पानी
फिर भी करके मैं मनमानी
जहाँ तहाँ उग ही जाता हूँ
चाहे धरती हो प्रतिकूल
हाँ मैं हूँ बबूल !

रक्षक भी बन सकता हूँ मैं
धरती पर फसलों की बाड़
सीमा से पहले ही रोकूँ
दुश्मन को बनके तिरशूल
हाँ मैं हूँ बबूल !

आयुर्वेद ने समझा मुझको
ऋषियों ने देकर सम्मान
गोंद, छाल या फल हों मेरे
औषधियों में किया कबूल
हाँ मैं हूँ बबूल!

- रेखा श्रीवास्तव
१ मई २०२०

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