अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

फूले फूल बबूल
 
फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार

वही शाम पीले पत्तों की
गुमसुम और उदास
वही रोज का मन का कुछ —
खो जाने का अहसास
टाँग रही है मन को एक नुकीले खालीपन से
बहुत दूर चिड़ियों की कोई उड़ती हुई कतार
फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार

जाने कैसी–कैसी बातें
सुना रहे सन्नाटे
सुन कर सचमुच अंग–अंग में
उग आते हैं काँटे
बदहवास‚ गिरती–पड़ती सी‚ लगीं दौड़ते मन में —
अजब–अजब विकृतिया अपने वस्त्र उतार–उतार
फूले फूल बबूल कौन सुख – अनफूले कचनार

- नरेश सक्सेना
१ मई २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter