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मैं बदनाम बबूल
 
भाव -कुभाव सभी सहकर भी
मैं बदनाम बबूल

झंझावात चले या पुरवा
या बरसे बरसात
सब शापों-अभिशापों में भी
सिरजे मेरा गात

अंतर बहुत नरम है लेकिन
लोग देखते शूल

जंगल की तन्हाई हो या
हो चौखट का साथ
बिना घुटन के रहता आया
ऊँचा करके माथ

कोई बार करे कितना भी
सब जाता हूँ भूल

जीवन की अभिलाषा में
है परसेवा का भाव
फिर भी सहता अंत समय तक
कुटिल उपेक्षित ताव

संगी बनूँ चिता का फिर भी
मन में रखता फूल

- कल्पना मनोरमा 
१ मई २०२०

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