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          झूमते बबूल

 
झूमते बबूल
मानो शराब पी कर

सुई जैसे लगते हैं इनके काँटे
हँसिया ले दातौन को टहनी छाँटे
कहीं कहीं लोग इन्हें
कहते हैं कीकर

बागों का पहरुआ क्योंकि कँटीला है
पत्तियाँ छोटी और फूल पीला है
भीषण गर्मी में पोंछता
है सीकर

इसकी लकड़ी होती बड़े कमाल की
और उमर होती करीब सौ साल की
पर्वतीय प्रदेशों में
मिलते तीतर

- अविनाश ब्यौहार
१ मई २०२०

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