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कह सकते हैं अभिजीत
 
आज लगा तुझ पर भी
कोई लिख सकता है गीत.

जंगल पर्वत नदी किनारों पर तेरा है डेरा
शांत चित्त तू बढ़कर तूने लोगों को ना घेरा
नाखूनों की भाँति बढ़े पैने शूलों के तीर
पर मानव की तरह किया नहिं तूने तेरा मेरा

आज लगा तुझको भी
हम कह सकते हैं अभिजीत

तेरे कुल के कई शूल काल के ग्रास हुए
शूची दर्भ नाराच बाण भी अब इतिहास हुए
तेरे वंशज आज बने अभिजात्‍य घरों की रौनक
देहयष्टि की कर्कशता से कई आभास हुए

आज लगा तुझसे मानव
ले सकता है कुछ सीख

हे बबूल ! दृष्टांत पुष्प हैं मन निर्मल है तेरा
चाह नहीं जल थल में भी हो तेरा अलग बसेरा
जीवन की उद्दाम दृष्टि से तू रहता निश्चिंत
कंटकीर्ण पथ मरुथल में भी तेरा जीवन ठहरा

आज लगा तुझसे थोड़ी
की जा सकती है प्रीत. .

- आकुल
१ मई २०२०

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