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मेरी क्या है भूल
 
रस सुगंध फल को मिले, मुझको बाँटे शूल।
जो पाया स्वीकृत किया, मेरी क्या है भूल।।

अवगुण सब देखा किये, गुण कोई न बताय।
बरसों से पीड़ा यही, मन में रहा दबाय।।

बोया पेड़ बबूल का, मेरा क्या है दोष।
देता हूँ जो पास है, मैं तो हूँ निर्दोष।।

उगे रसीले आम जो, ढेले पड़े हज़ार।
काँटें भरे बबूल ने, रक्षा की हर बार।।

पीले पुष्पों से सदा, सुरभित रहे बयार।
छालों से मेरी बने, औषधि कई प्रकार।।

कोई भी छोटा बड़ा, सदा गुणों से होय।
सभी गुणों का मोल है, जान पड़े हर कोय।।

- सरस दरबारी
१ मई २०२०

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