अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कीकर करे कमाल
 
पूज्यनीय है वृक्ष ये, काँटों भरा बबूल।
किन्तु मित्र अज्ञानवश, दिखता केवल शूल।।

फली और पत्ते तने, गोंद तने की छाल।
गुणकारी औषधि लिये, कीकर करे कमाल।।

विहँस रहा है ग्रीष्म में, सुंदर वृक्ष बबूल।
सम्मोहित करने लगे, इसके पीले फूल।।

कर लेता है स्वयं को, जीवन के अनुकूल।
तपते रेगिस्तान में, हँसकर खड़ा बबूल।।

मौसम हो अनुकूल या, हो मौसम प्रतिकूल।
विचलित होता ही नहीं, सब कुछ इसे कुबूल।।

- कृष्ण कुमार तिवारी
१ मई २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter