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किस्सा बबूल का
 
फूलों की नाज़ुकी नहीं चर्चा भी शूल का
देखा हर इक ज़ुबान पे किस्सा बबूल का

पत्ते हैं या कि पंख हैं फलियाँ कि झालरें
झूमे बबूल टहनियाँ पा गहना फूल का

कैसे मिलेंगे आम जो बोया कभी बबूल
फ़रमाया था कबीर ने मिसरा उसूल का

जीवन तो काँटे फूल-ओ-फल से घिरा बबूल
परखेगा वक्त-वक्त पे मत डर फ़िजूल का

हरियाली काट रेत के दरिया बहाये 'रीत'
इससे बड़ा सबूत दे, ईन्सां की भूल का

- परमजीत कौर 'रीत'
१ मई २०२०

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