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अम्बर छूने की इच्छा में |
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ऐंठ न कोई, नहीं अहम
अम्बर छूने की इच्छा में
सीधा तना रहा था तन
उड़ी आँधियाँ, हिले नहीं
तूफानों से कोई गिले नहीं
चन्दन वन की राह ना ढूँढी
बगिया में जा खिले नहीं
झुके, न काँपे विपदाओं में
गाते बजते रहे मगन
रूप बाँसुरी धरा कहीं
साँसों में सुर भरा कहीं
निर्बल की लाठी जो हो गए
शोषण हमसे डरा कहीं
ताड़ से सीधे ऊँचे तन में
बसा सदा उपकारी मन
झुरमुट में ही पले बढ़े
सब को लेकर साथ चले
गाँठ फाँस में उलझे नाही
न्यारे थे, पर लगे भले
निर्धन की कुटिया ही भायी
जहाँ सदा ही अपनापन
- शशि पाधा
१८ मई २०१५ |
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