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बँसवारी में
 
बाँसों के झुरमुट ने
सीटियाँ बजाईं
बँसवारी में सखी
आई पुरवाई

बाँस की फुनगी पर
हनुमान लहरा गए
टोकरी मौनी में
शुभ्र अक्षत छा गए

केले के घौद ने
बँहगी लचकाई
बँसवारी में सखी
आई पुरवाई

गगन की इमारतें
बाँसों की देन हैं
कुटिया और झोपड़ी
बाँस के अधीन हैं

अनुरागी बाँसुरी
कान्हा ने बजाई
बँसवारी में सखी
आई पुरवाई

एक दूजे में गुँथे
लगते ये झाड़ियाँ
खेतों को घेरकर
कहलाते बाड़ियाँ

पौधों ने घास सी
नम्रता दिखलाई
बँसवारी में सखी
आई पुरवाई

कभी कागद बने
कभी बने लेखनी
कुर्सी में ढलकर
बेंत बनी टेकनी

खाट पर लेटकर
दादी मुस्काई
बँसवारी में सखी
आई पुरवाई

- ऋता शेखर "मधु"
१८ मई २०१५

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