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गाँव के आसपास
 

गाँव के आसपास
सजावटी पौधों की तरह
शोभायमान हैं
बाँस के झुरमुट।
घरों की दीवारों पर
महिलाओं ने सुरीले स्वर में
मंगलगान गाते हुए
बाँस की कूची से
कुदरती रंग लगाकर
उकेरे हैं सुन्दर चित्र।
जिनके आसपास क्रीड़ारत हैं
छोटे बच्चे
अपने बाँस के खिलौनों के साथ।
पूर्वकाल में ताड़पत्रों और
भोजपत्रों पर
बाँस की कलम से
लिखे जाते थे बही खाते
और महान ग्रंथ।
दोपहर की धूप में
बाँस की छत के नीचे
बाँस की खाट पर उँघियाकर
अपनी थकान
उतारते हैं किसान।
कृषि को मजबूत आधार
प्रदान करने के साथ
बूढ़ों को सहारा भी दिया करती है
बाँस की लाठी।
अंतिम यात्रा में भी
मानव की अर्थी को
शमशान भूमि तक
सम्मान के साथ पहुँचाता है बाँस।
न जाने कब से
शायद पाषाणकाल से ही
मानव का साथ
निभाता आ रहा है
साधारण सा दिखने वाला बाँस।

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१८ मई २०१५

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