सबके मन को मोहते,
अमलतास के फूल।
शीतलता को बाँटते, मौसम के अनुकूल।१।
सूरज झुलसाता बदन, बढ़ा धरा का ताप।
अमलतास तुम पथिक का, हर लेते सन्ताप।२।
मौन तपस्वी से खड़े, सहते लू की मार।
अमलतास के पेड़ से, बहती सुखद बयार।३।
पीले झूमर पहनकर, तन को लिया सँवार।
किसे रिझाने के लिए, करते हो सिंगार।४।
विपदाओं को झेलना, तजना मत मुस्कान।
अमलतास से सीख लो, जीवन का यह ज्ञान।५।
गरमी से जब मन हुआ, राही का बेचैन।
छाया का छप्पर छवा, देते तुम सुख-चैन।६।
गरम थपेड़े मारती, जब गरमी की धूप।
अमलतास का तब हमें, अच्छा लगता “रूप”।७।
- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
16 जून 2007 |