तपिश का ताप सघनीभूत होकर
ज़मीं के वक्ष पर आघूर्ण होता।
सतत वीरानगी का राज बनकर
परिंदों के हलक को मौन करता।
गुंजन-सा मायूस आलम को बता
एक तरुवर तपिश का अभिषेक करता।
परित पर्णाभ
दल-सा श्याम तन पर
पीताभ पुष्प-गुच्छ का परिधान करता।
गोल लंबी शुष्क औ' परिपक्व फलियाँ
लू भरी पछुवा हवा को तान देती।
दंडनुमा फल-बीज की तासीर से तो
मल जनित सब व्याधियाँ काफ़ूर होतीं।
अपने गुणों को सहज ही चरितार्थ करता
गुलिस्ताँ की अमानत अमल अमलतास भाता।
रघुवीर मिश्र
16 जून 2007 |