था सूना-सूना सा
मेरा मन,
जैसा था
शिशिर में अमलतास,
पाकर तुम्हारे प्यार की तपन,
खिल उठा है ऐसे,
खिला आज जैसे,
मेरे आँगन का यह अमलतास।
छोटी-छोटी खुशियाँ
गुच्छित हुईं,
हो उठा प्रकाशित
मेरा आकाश
जल उठे हैं अनेक प्रकाश-पुंज,
ले आया जीवन में ऐसे बहार,
जैसे गदरा गया है यह अमलतास।
तुमने
प्यार से क्या सहलाया
यह तो बस
झर बिछ ही गया
तुम्हारे आँगन में
गर्म लू में भी
दे गया
बसंत का सा आभास
लहक उठा
जीवन मेरा ऐसे
जैसे फूलों भरा यह अमलतास
मंजु महिमा भटनागर
16 जून 2007 |