घोलने लगा
मकरंद साँसों में
अमलतास।
दर्द छिपाए
हर पल मुसकाए
अमलतास।
माधव बने
पहने पीतांबर
अमलतास।
मार्ग सजाएँ
अमलतास वृक्ष
पुष्प बिछाएँ।
छनकी धूप
अमलतास तले
स्वर्ण समान।
चहकी धूप
हँसे अमलतास
बच्चों समान।
सूर्योदय में
खिले अमलतास
सड़कों पर।
भावना कुँअर
16 जून 2007 |