अमलतास के फूल हमारे, जीवन को महकाते हैं
हँसते-हँसते जीना सीखो, ये हमको समझाते हैं।
जैसे कली फूल बनती है, खिल करके मुरझाती है
वैसे ही बचपन यौवन है, फिर बाती बुझ जाती है
गुलशन, माली, भौंरे, मौसम, सब पीछे रह जाते हैं।
अमलतास के फूल हमारे, जीवन को महकाते हैं।।
काँटों में भी रहकर हमने, चुभना कभी नहीं जाना
अपना धरम एक है केवल, इस दुनिया को महकाना
सदा समर्पित रहकर देवों, के सिर पर चढ. जाते हैं।
अमलतास के फूल हमारे, जीवन को महकाते हैं।।
क्या लाए थे, जो ले जाएँ, फिर काहे का रोना है
अंबर सब पर चादर ताने, धरती बनी बिछौना है
दुख-सुख नदिया के दोनों तट, सागर में मिल जाते हैं।
अमलतास के फूल हमारे, जीवन को महकाते हैं।।
डॉ. सुनील जोगी
16 जून 2007
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