सखि! आये दिन गर्मी तपास के
फूल खिले अमलतास के।।
कैसों मौसम हो गयो बैरी
काटे कटती नहीं दुपहरी
सूरज बन के बैठो पहरी
मीत लगैं घने पेड़ आसपास के।
फूल खिले अमलतास के
कैसी मौसम की मजबूरी
भावै हलुआ खीर न पूरी
रहती हरदम प्यास अधूरी
देह दुबली सी भई बिन प्रयास के।
फूल खिले अमलतास के
पूरी नींद न होय हमारी
आंखें हो गईं भारी भारी
कैसे कैसे रात गुजारी
भये सैंयाँ भी ऊपर पचास के।
फूल खिले अमलतास के
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
16 जून 2007
|