तेज़ धूप के तेवर पल-पल बढ़ती जाती प्यास।
फूलों की छैयाँ में बैठें अमलतास के पास।।
दूर-दूर तक राहों पर,
है गहरे सन्नाटे।
कुम्हलाए हैं फूल सभी,
पर मुसकाते काँटे।।
मौसम खो बैठा है अपना हरा भरा विश्वास।
फूलों की छैयाँ में बैठें अमलतास के पास।।
सड़कों पर लू का कर्फ्यू है,
बाग सभी वीरान।
कहाँ मिलेगी छाया पंछी,
उड़ते हैं हैरान।।
फूलों की झालर से सज्जित एक पेड़ है खास।
फूलों की छैयाँ में बैठें अमलतास के पास।।
जेठ दोपहरी अमलतास,
कुछ ऐसे हँसता है।
स्वर्णिम पगड़ी बाँध के,
जैसे दूल्हा लगता है।।
भीषण गर्मी में भी जाग्रत जिसके मन उल्लास।
फूलों की छैयाँ में बैठें अमलतास के पास।।
जेठ मास में तपे रोहिणी,
अच्छी हो बरसात।
कजरारे बादल आएँगे,
लेकर नई सौग़ात।।
अमलतास का खिलना ऐसा देता है आभास।
फूलों की छैयाँ में बैठें अमलतास के पास।।
सजीवन मयंक
16 जून 2007
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