क्यूँ रुका मैं डगर पर
यों चलता हुआ
रुक गए क्यों कदम फिर किसी आस से
देखा फिर तेरा चेहरा यों खिलता हुआ
रंग खिलते हुए ज्यों अमलतास के
एक मुस्कान होठों पे थी खेलती
ज्यों भंवर कोई फूलों पे मंडरा रहा
आंखें यों बोलती सी लगीं जैसे कि
प्रीत का गीत कोई मधुर गा रहा
इक मधुर स्वप्न था जेठ की दोपहर
फूल झरते हुए ज्यों अमलतास के
नींद से जब उठा भीगते थे पलक
हर्ष के अश्रुओं को सँभाले हुए
होंठ भीगे हुए थे किसी प्यास से
गीत आवाज़ के थे हवाले हुए
मन उमड़ता रहा खिड़कियों से परे
रंग रचते रहे फिर अमलतास के मोहिन्दर कुमार
16 जून 2007 |