संत अमलतास या
महंत अमलतास
वल्लरी लताओं के कंत अमलतास !
पीत
वसन पहन आप बाग में पधारे,
पुष्प पांखुरी हों
मानों स्वर्ण के सितारे
नख से शिख तक वसंत का लिबास,
वल्लरी लताओं के कंत
अमलतास!
झोंके पवन के जब झूम झूम आते,
लहरों में लहर लहर
गुच्छ गुनगुनाते
वयःसन्धि लतिका का हो चला विकास,
वल्लरी लताओं के
कंत अमलतास!
अल्हड़ नवेली वनबेली यूँ बोली,
सरेराह संत जी करो
न यूँ ठिठोली
छेड़ेंगी सखियाँ कर करके उपहास,
वल्लरी लताओं के
कंत अमलतास!
भोली सुकुमार देह रूप के सलोने,
छू छू के हवा मारे दिस दिस में टोने
अब कहाँ लताओं के होशो–हवा,
वल्लरी लताओं के कंत
अमलतास!
डॉ. जगदीश व्योम
16 जून 2007 |