आज फिर धरती पीत फूलों से नहाई है
मस्त बयारों में मंद-मंद छटा मुस्काई है
डाल-डाल फूलों ने लड़ियाँ भी सजाई हैं
देखो फिर अमलतास ने ली अंगड़ाई है।
झर झर झरें फूल पीली बहार आई है
मन मयूर नाच उठा बज उठी शहनाई है
धरा के इस सौंदर्य से सृष्टि भी इठलाई है
देखो फिर अमलतास ने ली अंगड़ाई है।
चहुँ ओर अनंत पीत चादर चढ़ आई है
खिल-खिल फूल हँसे खुशी की गूँज छाई है
धरा के इस शृंगार से ऋतु भी तरुणाई है
देखो फिर अमलतास ने ली अंगड़ाई है।
सूरज किरणें समेट पीत वर्षा बरसाई है
इन फूलों के सौरभ ने मदमस्ती छलकाई है
धरा के इस रूपरंग से वेला भी शरमाई है
देखो फिर अमलतास ने ली अंगड़ाई है।
अरविंद चौहान
16 जून 2007
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