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अविनाश अग्रवाल





  अपराध बोध

होगा उसको भी तो अपना बेटा प्यारा
होगा वो भी तो उसकी आँखों का तारा।

क्यों चुराता हूँ मैं उससे आँखें?
क्यों चाहता हूँ बत्ती हो जाए हरी
देखता हूँ जब उसको अपनी ओर आते?

इसलिए तो नहीं कि
मैं बैठा कार में
कर रहा बातें अपने बेटे से

हैरी पॉटर की
सुन रहा उसकी नई ज़िद
आई पॉड की

और वो बेचारा
इस ठिठुरती रात में
खड़ा चौराहे पर
माँग रहा भीख
अगले वक्त की रोटी के लिए
लिए गोद में

अपने बेटे को नंगा
खुद अधनंगा?

01 फरवरी 2007

 

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