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संकेत गोयल

जन्म- ३१ दिसम्बर १९७७ को अलीगढ़ में ।
शिक्षा- स्नातक (सम्मान) भौतिक शास्त्र (दिल्ली विश्वविद्यालय), परास्नातक भौतिक शास्त्र, (भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान, दिल्ली)

सम्प्रति-
अल्र्बटा विश्वविद्यालय, एडमंटन, कनाडा में विद्युत अभियान्त्रिकी में शोधार्थी एवं अध्यापन में संलग्न हूं।
कई वर्षो से काव्य में रूचि है। कुछ समय हिन्दी विद्यालय में अध्यापन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ है। संगीत, भूगोल, राजनीति, सामाजिक एवं सामूहिक गतिविधियॉं। हिन्दी के अतिरिक्त संगीत, कला से विशेष प्रेम है। स्थिर चित्र खींचने में विशेष रूचि है। एकमात्र लक्ष्य विज्ञान का प्रचार प्रसार करना और सफल जीवन व्यतीत करना है।

ई मेल- sanket@ece.ualberta.ca

  रे अनजान

तुझे देखकर ऐसा लगता है ओ मेरे अनजान

जैसे जीवन में एक नया सवेरा जाग उठा हो
जैसे मन के मन्दिर में एक नया दीप जला हो
जैसे अपने बाजुओं पर सब कुछ उठा लिया हो
जैसे दिल की धड़कनों ने एक नया रस पिया हो

दूर खड़ा वो विशाल हिमालय लगता है नादान
तुझे देखकर ऐसा लगता है ओ मेरे अनजान

पतझड़ में भी बागों में हरियाली सी छायी हो
एक घटा जो हर फूल पर नया श्रंगार लायी हो
जैसे 'बसंत आ गया' तितलियाँ ये संदेशा लायी हों

सजदा करने निकला हूँ पर मिल गये हैं भगवान
तुझे देखकर ऐसा लगता है ओ मेरे अनजान


याद तो करना

साथ न चलना याद तो करना
हृदय न देना हाथ तो देना

भूल जाना जब निशा मयंक तुम्हें आनंदित कर जायें
पर याद करना जब अलसाता अ्रुण तुम्हें तडपाये
भूल जाना जब नव प्रभात की मयूरी तुम्हें ललचा जाये
पर-याद-करना-जब-खामोश-निगाहें-शून्य में कहीं खो जायें
मैं आऊंगा एक खामोश एहसास के साथ
और उड़ा ले जाऊंगा तुम्हें दूर गगन के उस पार
तुम मान न देना एक दर्द तो देना
हृदय न देना हाथ तो देना

भूल जाना जब तुम्हारा आँचल रक्त प्रसूनों से भर जायें
पर याद करना जब कोई काँटा तुम्हें क्लेश दे जाये
भूल जाना जब जीवन के सारे स्वपन साकार हो जायें
पर याद करना स्वपन नौका में कोई छेद हो जाये
मैं आऊँगा सुबह के उस सुस्वपन के साथ
और उड़ा ले जाऊंगा तुम्हें सात समन्दर के भी पार
तुम प्यार न देना एक आस तो देना
हृदय न देना हाथ तो देना

२४ अक्तूबर २००४

 

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