निशांत कुमार
जन्म- २२
नवम्बर १९७७ फरीदाबाद हरियाणा में
शिक्षा- एम.बी.बी.एस. फिलहाल एनेस्थीस्योलौजी में स्नातकोत्तर
डिप्लोमा जे.जे. हॉस्पिटल मुम्बई में कार्यरत।
लेखन का शौक बचपन से ही था किन्तु हिन्दी में प्रथम वर्ष
एम.बी.बी.एस. में मित्र के आग्रह पर लिखना शुरू किया।
संपर्क-
kumarnishant@yahoo.co.uk
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समय की रेत
इन उफनती हुई लहरों का
जोश देखकर क्यों मुझे लगता है
जैसे न जाने कितने अरमाँ
कितने दर्द किस्से कहानियाँ
दफन हैं समुन्दर की गहराइयों में
और रह रह कर
सहनशीलता की हद से परे
ये चिल्लाती हैं टकराती हैं
किनारे पड़े पत्थरों से
कुछ न कुछ राज़ खोलती हैं
अपने सीने में से अतीत के
पन्ने रेत पर खुले छोड़ जाती हैं
समझ नहीं आता इन पन्नों को देख
रोएँ, मातम मनाएँ या याद करें
वो जो गुज़र गया
मगर वक्त की रेत पर कहीं न कहीं
अपने निशान छोड़ गया।
ऐ मेरे दिल तू ऐसा क्यों है।
बेवफा
लहरें
सागर की लहरें
नाचती झूमती लहराती
तुम्हारी यादों की तरह
आती हैं
मन को छू जाती हैं
रह रह कर
याद दिलाती हैं
कि कहीं न कहीं
किसी मोड़ पर
मिलेंगे हम तुम ज़रूर
लेकिन
फिर यह भी सोचता हूँ
कि जैसे लहरें
आती हैं
मन को बहला कर
दिल को छू कर
पल भर के लिए
अपना सा बना कर
वापस चली जाती हैं
डर लगता है
क्यों मुझे कि जैसे
तुम आओगी
पल भर का साथ निभा
इन बेवफा लहरों की तरह
मुझे एक बार फिर
यूँ ही तन्हा छोड़ जाओगी।
२४ अक्तूबर २००४ |