दूर के मुसाफ़िर
चलते-चलते थक के हम चूर हो गए
वक़्त के हाथों पाँव मजबूर हो गए
चले थे बड़ी धूम से बादशाह बनने
काम-काज में फ़से मज़दूर हो गए
किस क़दर निराली है शिक्षा प्रणाली
'पास' होते होते सब दूर हो गए
परदेस में बस जाने के बाद
चर्चे वतन के मशहूर हो गए
आस थी जिनसे कि उबारेंगे हमें
सियासत के ताज में कोहिनूर हो गए
किस किस से बचाए दिल-ए-नादान को
छोटे-मोटे कीटाणु तक शूर हो गए
कब और कहाँ मिलेंगी वो रामबाण दवा
कि इक खुराक़ ली और गम दूर हो गए
24 जून 2007
|