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- नई हवा में -

शत-शत प्रणाम

पर्वतों से अडिग हैं हौसले जिनके
चट्टानों से दृढ़ हैं संकल्प जिनके
भारत के उन वीर जवानों को
जन मानस का शत-शत प्रणाम।

बर्फ़ीली हवाओं को चीरते बदन इनके
दुर्गम पर्वतों पर दौड़ते चरण इनके
दुश्मन की ताक में लगे नयन इनके
देश रक्षा में बलिदान प्राण जिनके

भारत के उन वीर जवानों को
जन मानस का शत-शत प्रणाम।

रक्त कण से सरहदें चीरते जाते
रणघोष से मंज़िलें जीतते जाते
हर गोली को हँसते झेलते जाते
शत्रु के सीने भेदते जाते

भारत के उन वीर जवानों को
जन मानस का शत-शत प्रणाम।

तीरंगे की शान में है शान इनकी
सजग प्रहरी की है पहचान इनकी
युद्धभूमि ही है कर्मभूमि जिनकी
मातृभूमि ही माँ की गोद जिनकी

भारत के उन वीर जवानों को
जन मानस का शत-शत प्रणाम।

हर पग पर शत्रु का संहार करें
भारत माँ की जय-जयकार करें
वीर अभिमन्यु से यह रणबाँकुरे
निर्भय हो हर चक्रव्यूह पार करें

भारत के उन वीर जवानों को
जन मानस का शत-शत प्रणाम।

ए सीमाओं के रक्षक शूरवीरों!
स्वतन्त्रता ज्योति तुम्हारे हाथ है
हम याद दिलाएँ हर पल तुमको
गर्वित यह देश तुम्हारे साथ है

ए भारत के वीर जवानों तुमको
जन मानस का शत-शत प्रणाम।

-शशि पाधा
११ अगस्त २००८

  ओ स्वतंत्रता की देवी

ओ स्वतंत्रता की देवी,
सूरत है तेरी बहुत भोली,
ममता से भरी है तेरी झोली,
प्यारी है तू अनुपम और अनूठी,
तुझे पाने हम ने खाई है गोली।
ओ स्वतंत्रता की देवी,
ओ स्वतंत्रता की देवी,
भारत माँ की सहेली है तू
साथ उनकी निभाती रही तू
चहकते-महकते रहे इस प्रांगण में
सुख-दुख सहे मिलकर इस आँगन में।
ओ स्वतंत्रता की देवी,
ओ स्वतंत्रता की देवी,
आए पहले जब कई विदेशी यहाँ,
हुए चकित देखकर यह जहाँ,
पर उनकी चाल सब फिकी पड़ गई,
क्योंकि अंग्रेज़ों की हुकूमत बढ़ गई।
ओ स्वतंत्रता की देवी,
ओ स्वतंत्रता की देवी,
अंग्रजों ने भारत माँ से तुमको अलग किया,
खूब लूटा उन्हें और बंदी बना कर रख दिया,
बेडियों को काटने तुम्हारे सब पूत एक हो गए,
एक के बाद एक सब अपनी जान देते गए।
ओ स्वतंत्रता की देवी,
ओ स्वतंत्रता की देवी,
मिली स्वतंत्रता, हो गए सब खुश,
पर विभाजन के कारण सब थे नाखुश,
भाई-भाई खून के प्यासे हो गए,
दोनों सहेलियाँ मिलकर रोते गए, रोते गए,
ओ स्वतंत्रता की देवी,
ओ स्वतंत्रता की देवी,
खैर!! सब कुछ अब संभल गया,
देश खूब तरक्की करने लग गया,
फिर भी माँ के है मायूस चेहरे,
सहेली भी है, सोच में गहरे,
आओ प्रण करे!! हम,
रखेंगे सदा स्वतंत्रता को सदैव प्रज्ज्वलित,
किसी के सामने दोनों को होने देंगें हम लज्जित।
ओ स्वतंत्रता की देवी,
ओ स्वतंत्रता की देवी।

-राजश्री
११ अगस्त २००८
 

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