अनिल मिस्त्री
भारत के हृदय स्थल छत्तीसगढ़ की
इस्पात नगरी भिलाई में जन्म और पालन पोषण, व्यवसाय से सूचना
प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में इंजिनियर, मगर ह्रदय से एक
संवेदनशील लेखक। पिछले १५ वर्षो से पत्र-पत्रिकाओं और समाचार
पत्रों में कई रचनाएँ प्रकाशित।
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दो छंदमुक्त रचनाएँ
कुछ इस तरह
कुछः इस तरह
खिलता है गुल, कुछ इस तरह
जिन्दगानी मे है वो
रह रह के महके, मानो गुलाबो का अर्क हो
यू तो आदत नही हमको रेशमी राहो की
बस एक मखमली संदल सा है वो
कुछ मदमाती सी लहर सी
कुछ सब्ज़्बाग सा मन्जर
इक ऊँची पहाड़ी पर
बादलों को चूमती
ओस में भीगी हरियाली है वो
हमको तो मालूम भी नही कि, है क्या
बस मेरी खुशहाली की कहानी है वो
छोटी सी मौज
चंद लकीरों ने हथेली क़ी
बहुत सताया है अक्सर
हमने भी मगर अफताब-ऐ-असमान से
नज़रें लड़ने क़ी कसम खायी है
मालूम है राहों में
आगे तूफ़ान बहुत हैं , मगर
दिल में मंजिल से मोहब्बत
क़ी खुमारी छाई है
यूँ ना कहा करो हमसे
कि तेरे बस की नहीं ये शय
छोटी सी मौज ने भी अक्सर
सैकड़ों कश्तियाँ डुबाई हैं
१९ दिसंबर २०११
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