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कार्यशाला-
नवगीत की पहली कार्यशाला में सबने दी गई पंक्ति पर नवगीत लिखने का अभ्यास किया। पंक्ति थी प्यार का रंग न बदला। यह पंक्ति सुप्रसिद्ध नवगीतकार नचिकेता के गीत प्यार का रंग से ली गई थी। कार्यशाला में नये पुराने
१८ कवियों ने भाग लिया। इन रचनाओं पर जिन विद्वानों ने टिप्पणी की उनके नाम हैं- शास्त्री नित्यगोपाल कटारे, डॉ. जगदीश व्योम और आचार्य संजीव सलिल। कार्यशाला टीम अनुभूति टीम संरक्षण में मानसी (मानोशी चैटर्जी) के विशिष्ट आतिथ्य में आयोजित की गई।
 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इनके अतिरिक्त पारुल, लावण्या, शार्दूला और निर्मल सिद्धु के नवगीत भी पसंद किए गए

- सब कुछ बदला

सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

भोजपत्र के युग से
कम्प्यूटर के युग तक
दुनिया ने आँसू दे-देकर
छीने हैं हक़
हरिक हँसी पर
ताले जड़ डाले नफ़रत ने
चला आ रहा
लगातार क्रम वही आज तक
लेकिन प्रेम-दिवानी
मीरा ने हर युग में,
हँस कर विष पीने का
अपना ढंग न बदला
सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

साँसों पर पहरे
लेकिन ज़िन्दा है अब भी
वर्जित फल चखने की
अभिलाषा है अब भी
जंगल हो, बस्ती हो,
पर्वत हो या सहरा,
ढाई आखर है तो
ये दुनिया है अब भी
सतयुग से कलियुग तक
जग बेशक आ पहुँचा,
फूलों ने खुशबू का
लेकिन संग न बदला
सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

- संजीव गौतम
 

३-बदला जीवन

बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला

बादल बरसे धरती पिघले
माटी सींचे अंकुर निकले
बदला मौसम
खिलने का पर ढंग न बदला
बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला

उंगली थामे नन्हे हाथ
पंख पसारे माँ का साथ
बदले संगी
पर मंजिल का पंथ न बदला
बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला


आश-निराशा, उलझन-सुलझन
समय उम्र में अटका सा मन
बदला बचपन
लेकिन मन स्वछंद न बदला
बदला जीवन
मगर प्यार का रंग न बदला

- अर्बुदा ओहरी
 

५- बदले नयन

बदले
नयन स्वप्न बहुतेरे
मगर प्यार का रंग न बदला

हूक प्रेम की शूल वेदना
अंतर बेधी मौन चेतना
रोम-रोम में रमी बसी छवि
हर कण अश्रु सिक्त हो निखरा
आड़ी-तिरछी रेखाओं का
धूमिल-धुंधला अंग न बदला

बदले
नयन स्वप्न बहुतेरे
मगर प्यार का रंग न बदला

मिथ्या छल के इंद्रधनुष में
बंध के रेशा-रेशा पागल
क्षितिज मिलन की आस में जोगी
आशाओं का प्यासा सागर
दुनिया छोड़ी लाज भुलाई
युग-युग से ये ढंग न बदला

बदले
नयन स्वप्न बहुतेरे
मगर प्यार का रंग न बदला

- मानसी



२५ मई २००९

- कैसा भ्रम है

कैसा भ्रम है
अविरल क्रम है
हर पल,
क्षण सब कुछ बदला है
मेरा मन तो नहीं मानता
प्यार का रंग नहीं बदला है।।

कितने धोखे
छल-प्रपंच हैं
मक्कारों से भरे मंच हैं
झूठों की झूठी दुनिया में
झूठे ही बन गए पंच हैं
झूठ कहेंगे
झूठ सहेंगे
झूठ की खातिर
झूठ लिखेंगे
झूठ-
नगर के कोलाहल में
झूठों का परचम बदला है
चलो जूठ ही लिख देता हूँ
प्यार का रंग नहीं बदला है।।

- अनाम

 

४- हम तुम बदले

हम तुम बदले
मगर प्यार का रंग नहीं बदला

वही समाचारों संग अपनी
चाय होती है
वहीं लॉन पर सुबह सुनहरी
मुखड़ा धोती है
धरती बदली
मगर प्रकृति का संग नहीं बदला

सागर तट पर
शाम टहलने अब भी जाते हैं
अब भी झोला भर के सब्जी
घर को लाते हैं
सागर बदले
पर जीने का ढंग नहीं बदला

आँखों पर
चश्मे ने अपनी जड़ें जमा ली हैं
काले बालों में चाँदी ने
लड़ियाँ डाली है
पर सुख-दुःख संग सहने का
अनुबंध नहीं बदला

अब भी हिंदी गानों पर
मन विह्वल होता है
अब भी मन का कोई कोना
गाँव में होता है
भाषा बदली
रामायण सत्संग नहीं बदला

- पूर्णिमा वर्मन

 

६-आए गए अनगिनत मौसम

आये गये
अनगिनत मौसम
मगर प्यार का रंग न बदला
युग बदला
दुनिया ये बदली
तेरा मेरा संग न बदला

मैं कान्हा, तू राधा मेरी
वृंदावन की कुंज गली थी
मैं शंकर बन नाचा था, जब
तू गौरी अग्नि में जली थी

बंसी की वो
तान न बदली
डमरू और मृदंग न बदला

युग बदला
दुनिया ये बदली
तेरा मेरा संग न बदला

सदियों-सदियों सहते आये
जंजीरें सब तो़ड़ीं हमने
परबत खोदे, दरिया बाँधा
हर युग में जब भी हम जन्में

सिंहासन
कितने ही बदले
इश्क ने अपना ढंग न बदला

युग बदला
दुनिया ये बदली
तेरा मेरा संग न बदला

-गौतम राजरिशी

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