अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कुमार विश्वास के मुक्तक

 

  भारत भूमि के प्रति

हर इक खोने में हर इक पाने में तेरी याद आती है
नमक आँखों में घुल जाने में तेरी याद आती है
तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ
समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है

हर इक खाली पड़े आलिंद तेरी याद आती है
सुबह के ख्वाब के मानिंद तेरी याद आती है
हलो हे हाय सुनकर तो नहीं आती मगर हमसे
कोई कहता है जब जयहिंद तेरी याद आती है

कोई देखे जनमपत्री तो तेरी याद आती है
कोई व्रत रख ले सावित्री तो तेरी याद आती है
अचानक मुश्किलों में हाथ जोड़े आँख मूँदे जब
कोई गाती हो गायत्री तो तेरी याद आती है

सुझाए माँ जो महूरत तो तेरी याद आती है
हँसे गर बुद्ध की मूरत तो तेरी याद आती है
कहीं डालर के पीछे छुप गए भारत के नोटों पर
दिखे गाँधी की जो मूरत तो तेरी याद आती है

अगर मौसम हो मनभावन तो तेरी याद आती है
झरे मेघों से गर सावन तो तेरी याद आती है
कहीं रहमान की जय हो को सुनकर गर्व के आँसू
करे आँखों को जब पावन तो तेरी याद आती है

९ अगस्त २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter