राजेन्द्र
स्वर्णकार
राजस्थानी,
हिंदी और उर्दू, ब्रज, भोजपुरी और अंग्रेजी में मुख्यतः
छंदबद्ध काव्य- सृजन, संगीत में विशेष रुचि मंच पर सस्वर कविता
पाठ के लिये प्रसिद्ध। आकाशवाणी, पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में
रचनाएँ प्रकाशित प्रसारित। अंतर्जाल के लगभग सभी प्रमुख स्थलों
पर रचनाएँ प्रकाशित। चित्रकारी, रंगकर्म, संगीत, गायन और
मीनाकारी में भी रुचि।
एक गजल संग्रह राजस्थानी में- रूई मांयी सूई तथा
एक हिंदी गजल संग्रह- आईनों में देखिए नाम से प्रकाशित।
ईमेल :
swarnkarrajendra@gmail.com
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कवित्त
१
पवन सुहावनी है, रुत मनभावनी है,
मेरे घर, मेरे उर में सखी, बसंत है !
विमुख वियोग मो'से, समुख सुयोग मेरे
पल प्रतिपल पास प्राणप्रिय कंत है !
दांव-दांव जीत मेरी साँस-साँस गीत गावै,
मेरे सुख आनंद को आदि है न अंत है !
जग में हज़ार राह, मोहे न किसी की चाह,
मोहे प्राण से पियारो प्रणय को पंथ है !
२
अमुवा पै बौर, गावै पिक, नाचै मोर,
मेरे चितचोर मतवारो ये बसंत है !
बाग में तड़ाग माँही, आग माँही, राग माँही,
भाग में, सुहाग माँही प्यारो ये बसंत है !
सखी वारि जाऊँ, निज भाग्य को सराहूँ,
झूम-झूम’ गीत गाऊँ, प्यारो न्यारो ये बसंत है !
बैर ठौर प्रीत, प्रीत वारों की या रीत,
हार में ही छुपी जीत को इशारो ये बसंत है !
३
खेत-खेत पीली-पीली सरसों की चादर है,
वन-वन खिल्यो लाल केशरी पलाश है !
केतकी गुलाब जूही मोगरा चमेली गेंदा
भाँत-भाँत फूलन की गंध है, सुवास है !
भ्रमर करे गुंजार, तितलियाँ डार-डार,
चहुं दिश मदन की मस्ती को आभास है !
बिसरी है सबै सुध, भ्रमित भयी है बुध,
मन्मथ-रति को कण-कण महारास है !
४
सृष्टि वा की वा है... ऋतुराज के पधारने से,
सगरे जगत में नवीन कोई बात है !
दिवस नूतन, निशा नवल नवेली,
नव पुष्प, नव गंध, नव पात, नव गात है !
दृष्टि वारे देखे... नव सृष्टि के निमित,
कर वीणा लिये' गा'य रही शारदा साक्षात है !
देव महादेव जब झूमने लगे
बिचारे मनुज राजेंदर की कहो क्या बिसात है?
२ जनवरी २०१२ |