आशुतोष द्विवेदी
जन्म- २ जून
१९८२ को कानपुर, उत्तर प्रदेश में।
शिक्षा- परास्नातक, गणित, इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
कार्यक्षेत्र- भारतीय विदेश सेवा (ब), विदेश मंत्रालय, नई
दिल्ली। १९९४ से काव्य-रचना, छंद (घनाक्षरी, सवैया, दोहा,
संस्कृत-वर्णवृत्त), गीत, ग़ज़ल, मुक्तक आदि विविध विधाओं में।
कुछ मंचों पर एवं कई गोष्ठियों में काव्य-पाठ। विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
संवेदना
नामक आपने चिट्ठे पर
भी कुछ रचनाएँ उपलब्ध।
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घनाक्षरी
(१)
आज आयी मेरी याद, उसे बरसों के बाद,
चित्त ने कहा प्रसाद बन चढ़ने को आज।
सब सुध-बुध खोई, अब रोके नहीं कोई,
अश्रु-मणियाँ पिरोयीं माल गढ़ने को आज।
ऐसा लगता है प्यार, कस कमर तैयार,
छोड़ पीछे ये संसार आगे बढ़ने को आज।
शब्दों ने मचाया शोर, बहे रस पोर-पोर,
गए भाव झकझोर छंद पढने को आज।
(२)
तुम्हें सूझती ठिठोली, मेरी जान जा रही है,
यूँ न खेल करो, ऐसे अंगड़ाईयाँ न लो।
कोई मर जाएगा तो क्या मिलेगा तुम्हें बोलो!
बिन बात सर अपने बुराईयाँ न लो।
मेरी महफिलें छूटीं तुम्हें याद करने में,
अब मुझसे ये मेरी तन्हाईयाँ न लो।
कहीं का तो प्रिये छोड़ो, चाहे जोड़ो, चाहे तोड़ो,
पल में ही उम्र भर की कमाईयाँ न लो।
(३)
क्वार की ये क्वारी-क्वारी धूप लगती है भारी,
प्यारी तेरे प्यार की खुमारी नहीं जाती है।
सुबह की बेकरारी, शाम की उमंग सारी,
चित्त की अटारी से उतारी नहीं जाती है।
तेरी कारी-कजरारी अँखियों की सेंधमारी,
ऐसी है बिमारी कि सुधारी नहीं जाती है।
कुछ भी हो सुकुमारी, मौसम की बलिहारी,
तेरी याद से हमारी यारी नहीं जाती है।
(४)
कुछ मुस्कुराहटों से, दर्द भारी आहटों से,
यूँ पिरोया हुआ जिंदगी का हार ले लिया।
थोड़े फूल चुन लिए, थोड़ी रौशनी मिला ली,
थोड़ा सा प्रथम प्यार का खुमार ले लिया।
कभी हलके हुए तो फिक्र अपनी भी नहीं
और कभी सारी दुनिया का भार ले लिया।
छंद कहना न छूटा, लाख समय ने लूटा,
शब्द कम पड़ गए तो उधार ले लिया।
(५)
भाग्य की निठुरता ने छीन ली संजीवनी जो,
प्यार उसे पाने के प्रयास में है कब से।
क्योंकि सोमरस को भी तुच्छ सिद्ध करती है,
कुछ ऎसी गंध मेरी श्वास में है कब से।
तेरे बिन, ओ सुमन से खिले बदन वाली,
शिशिर की टीस मधुमास में है कब से।
तुझे फिर छूने की उमंग अंग-अंग लिए,
देह दिन-रात कल्पवास में है कब से।
१२ जनवरी २००९ |