मुक्तक
चाँद किरणें कमंद फेंक रहा
एक मुस्कान मंद फेंक रहा
बीन लो चांदनी के आँचल में
चाँद छंदों के बंद फेंक रहा
ये संदेशा बहार लाती है
युग नहीं पल का प्यार लाती है
फूल मुरझा के कली से बोला
इन बहारों पे हँसी आती है
प्यार कंगन नहीं चितवन में है
प्यार नूपुर नहीं रुनझुन में है
प्यार वाणी नहीं संकेतों में
प्यार अलि में नहीं गुंजन में है
प्यार सावन नहीं आँगन में है
बिजलियों बूँद के नर्तन में है
प्यार नभ में नहीं घनमाला में
प्यार जल में नहीं कंपन में है
प्यार साँसें नहीं सिहरन में है
प्यार अनुभूति के अर्चन में है
मुक्ति का अर्थ कहीं बँधना हो
प्यार की मुक्ति तो बंधन में है
१७
नवंबर २००८ |