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बाल स्वरूप राही

जन्म- १६ मई १९३६ को तिमारपुर, दिल्ली में
शिक्षा- स्नातकोत्तर उपाधि हिंदी साहित्य में।

कार्यक्षेत्र- दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष के साहित्यिक सहायक, लेखन, संपादन व दूरदर्शन के लिये लगभग तीस वृत्तिचित्रों का निर्माण। कविता, लेख, व्यंग्य रचनाएँ, नियमित स्तंभ, संपादन और अनुवाद के अतिरिक्त फिल्मों में पटकथा व गीत लेखन।

प्रकाशित कृतियाँ-
कविता संग्रह- मौन रूप तुम्हारा दर्पण, जो नितांत मेरी है, राग विराग।
बाल कविता संग्रह- दादी अम्मा मुझे बताओ, जब हम होंगे बड़े, बंद कटोरी मीठा जल, हम सबसे आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ आदि।

  मुक्तक

एक

मेरा विशवास पराजय को जहर होता है
मेरा उल्लास उदासी को कहर होता है
मुझे घिरते हुए अँधियारे की परवा क्या
मेरा हर बात का अंजाम सहर होता है

दो

आज बदली है जमाने ने नई ही करवट
नई धरा ने विचारों का छुआ है युग तट
तुम जिसे मौत की आवाज समझ बैठे हो
नए इनसान के कदमों की है बढ़ती आहट

तीन

इन चमकदार कतारों पे नजर रखती हूँ
सुर्ख बेदाग अँगारों पे नजर रखती हूँ
दे के मिट्टी के खिलौने मुझे बहकाओ न तुम
मैं जवानी हूँ सितारों पे नजर रखती हूँ

चार

दूर तक एक भी आता है मुसाफिर न नजर
ये भी मालूम नहीं रात है ये या कि सहर
मेरे अस्तित्व के बस दो ही चिह्न बाक हैं
एक बुझता सा दिया, एक उजड़ती सी नजर

पाँच

जिसके जीन से जी रहे थे हम
दर्द का दम निकल गया शायद
एक मुद्दत में नींद आई है
मौत का दिल पिघल गया शायद

७ फरवरी २०११

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