परमजीत कौर रीत
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माहिये
क्या मौज फकीरी की
सरल हवाओं को
कब फिक्र असीरी की
मन का ताना-बाना
चिंता तागे में
उलझाये मत जाना
खामोशी है कहती
बन यादें सावन
आँखों से है बहती
वो आँगन, फूलों की
याद सदा आये
बाबुल-घर झूलों की
मैया की बाहों को
भूल नहीं पाये
माँ-तकना राहों को
खोना क्या, क्या पाना
जीना अपनों बिन
क्या जीना, मर जाना
नदिया सा मन रखना
रज या कंकर हो
हँस-हँसकर सब चखना
नित रूप बदलता है
वक्त के पहिये पे
किसका वश चलता है
कूजागर जाने है
दीपक जीवन में
क्या ठेस मायने है
कूजे पर आन तने
कूजागर हाथों
डोरी तलवार बने
अहसासों के मोती
मन-आँखें-सीपी
धर-धर कर हँस-रोती १ जून २०१९ |