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तोताराम ‘सरस‘

जन्म- १ जनवरी १९५४ को सुदामा का वास (अलीगढ़) में।

काव्य विधाएँ-
कविता, गीत, घनाक्षरी, मुक्तक, ग़ज़ल आदि

 

 

 

नारी नर की शक्ति है

नारी नर की शक्ति है, जीवन का आधार।
नर जीवन नारी बिना, है जग में निस्सार।।
है जग में निस्सार, भाव उर उत्तम भरती।
करे अमंगल दूर, सदा ही मंगल करती।
नारी के आधीन, ‘सरस' यह दुनिया सारी।
आदर्शों की खान, सुशीला सौम्या नारी।

दीवाली के दीप का, समझें हम सन्देश।
जगमग जगमग हो धरा, रहे न तम का लेश।
रहे न तम का लेश, ज्ञान पूरित हो जन जन।
बढ़े परस्पर प्यार, न हो कोई भी अनबन।
हर अभाव हो शून्य, बढ़े घर घर खुशहाली।
आती रहे सदैव, ‘सरस' ऐसी दीवाली।

हारे हैं सब वक्त से, वक्त बड़ा बलवान।
नहीं भूलना चाहिए, कभी वक्त का ध्यान।
कभी वक्त का ध्यान, वक्त को हम पहचानें।
चलें वक्त के साथ, व्यर्थ की ठान न ठानें।
दिखलाता है वक्त, जगत में अजब नज़ारे।
नहीं वक्त की हार, वक्त से सब हैं हारे।

समरसता के देश में, बहती विषम बयार।
नीरोगी परिवेश को, बना दिया बीमार।
बना दिया बीमार, प्रदूषण हर उर अन्तर।
बढ़े नित्य अलगाव, दश है बद से बदतर।
बरस रहा विद्वेष, दिलों में प्यार न बसता।
बढ़ी विषमता बेल, घट रही अब समरसता।

भाईचारा मिट गया, नहीं रहा सद्भाव।
जाने किसका पड़ गया, यह प्रतिकूल प्रभाव।
यह प्रतिकूल प्रभाव, बिखरते रिश्ते नाते।
है गैरों से नेह, सगे सम्बन्ध न भाते।
यह शत-प्रतिशत सत्य, सभी ने है स्वीकारा।
‘स
रस' न दिखता आज, कहीं भी भाईचारा।

१ सिंतबर २०१४

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