शालिनी रस्तोगी
जन्म- १६ जुलाई उत्तरप्रदेश के
रामपुर जिले में
शिक्षा- एम. ए. (मनोविज्ञान) बी. एड.
कार्य क्षेत्र-
शिक्षण ( डी.ए.वी.पब्लिक स्कूल, गुडगाँव में अध्यापिका के रूप
में) और स्वतंत्र लेखन। मुक्त छंद, ग़ज़ल, नज़्म, सवैया,
कुण्डलिया, दोहा आदि विधाओं में सक्रिय।
प्रकाशित कृतियाँ-
साँझा काव्य संग्रह ‘पुष्प पांखुरी’, गुलमोहर, परों को खोलते
हुए, सारांश समय का, तुहिन (सभी सांझा काव्य संग्रह )
ब्लाग-
http://shalini-anubhooti.blogspot.com
ई-मेल-
r.shalini167@gmail.com
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सावन से ही लग
गई (कुंडलिया)
१
सावन से लग ही गई, सखि-नैनों की होड़
हार मानते वे नहीं, दोनों ही बेजोड़
दोनों ही बेजोड़, नैन परनार बहाएँ
कंचुकि पट भी भीज, विरह की गाथा गाएँ
पड़े विरह की धूप, जले है विरहन का मन
हिय से उठे उसाँस, नैन से बरसे सावन
२
चितवन से हर ले जिया, चितवत करै शिकार
गोरी तेरे दो नयन, व्याध बड़े हुशियार
ब्याध बड़े हुशियार, जाल ये अपने कसते
मृगनयनी को देख, यत्न आखेटक करते
काम कमान सो वक्र, रूप-माया का उपवन
सजन हिय रहा डोल, देख तेरी ये चितवन
३
मत करियो मनमीत से, सखी कभी भी प्रीत
रीता मन हो जाय री, ऐसी है ये रीत
ऐसी है ये रीत, हिया हर पल तड़पाए
जतन करें हम लाख, मन कहीं चैन न पाए
मन में है रस लोभ, भ्रमर से हैं ये, डरियो
उड्ते कर रस-पान, प्रीति भूले मत करियो
४
हारे हियरा से भला, जीवन जइयो हार
हिया हार कर कब चले, जीवन का व्यापार
जीवन का व्यापार, रात-दिन होता घाटा
तडपत है दिन रैन, वैद्य भी जान न पाता
हिया न पाये चैन, फिरोगे मारे-मारे
निर्मोही हित मीत, हिया क्यों कोई हारे
४
कजरा गजरा डाल कर, कर सोलह सिंगार
गोरी बैठी सेज पर, करने को अभिसार
करने को अभिसार, राह पर पलक बिछाए
पल-पल बीते पहर, बिना पलकें झपकाए
किस सौतन का आज, बना जादूगर गजरा
तडपत बीती रैन, बहा नयनन से कजरा
५.
कजरा नैनन से बहा, कारे पड़े कपोल
निर्मोही पर प्रीत का, जान न पाया मोल
जान न पाया मोल, रहा परदेसी होकर
गये विरह में वर्ष, रोय निज चैना खोकर
देखी अँसुवन धार, बरसना भूले बदरा
पिया बसे जब नैन, कहाँ ठहरेगा कजरा
१ दिसंबर २०१५
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