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डॉ. नलिन

जन्म- १८ जनवरी १९४८ को कोटा (राजस्थान) में।

कार्यक्षेत्र-
देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में गीत,
गज़ल, कहानियाँ व लघुकथाओं का निरंतर प्रकाशन। तीन गज़ल संग्रह "लापता चेहरा हुआ", "खामोशी का शोर गज़ल" तथा "चाँद निकलता तो होगा" एवं एक गीत संग्रह ‘गीतांकुर' प्रकाशित।

 

कुण्डलिया


दीवारें मन में उठीं, और बँटे दालान।
अब न फुहारें सावनी, अब न फागुनी न्हान।
अब न फागुनी न्हान, हृदय है खाली खाली।
दिख जाएँ कुछ फूल, तरसते हैं सब माली।
कहें ‘नलिन" कविराय, व्यर्थ क्यों मन को मारें।
तोड़ें उठकर शीघ्र, खड़ी कीं जो दीवारें।


क्या क्या करता है मनुज, प्रकृति विरुद्ध कुकाज।
साथ प्रकृति के यदि चले, सुखमय रहे समाज।
सुखमय रहे समाज, कष्ट जीवन से जाएँ।
प्रभु भी रहें प्रसन्न, निकट हम उनको पाएँ।
कहें ‘नलिन' कविराय, पाप का ही घट भरता।
देखो आज मनुष्य, स्वार्थवश क्या क्या करता।।


भवनों के निर्माण में, जीवन किया व्यतीत।
जीवन के निर्माण में, भूल गया क्यों मीत।
भूल गया क्यों मीत, फिर रहा फूला फूला।
क्या कुछ देता साथ, भरम का झूले झूला।
कहें ‘नलिन' कविराय, दास मत हों सपनों के।
कर लें अब निर्माण, तनिक जीवन भवनों के।


धीरे धीरे चल जरा, क्यों भागे नादान।
कुछ दिन जीने के लिए, जोड़े अति सामान।
जोड़े अति सामान, अरे! प्रभु को भी भज ले।
जाना है सब छोड़, आज भीतर से सज ले।
कहें ‘नलिन' कविराय, रहे मन नदिया तीरे।
क्यों लाएँ तूफान, बहें भी धीरे धीरे।


निर्धन के तो पास है, भूख पेट की एक।
धनवानों की भूख के, देखो रूप अनेक।।
देखो रूप अनेक, नहीं है गिनती कोई।
पाते कब संतोष, कामना कब है सोई।
कहें ‘नलिन' कविराय, दास होते हैं धन के।
कब आते हैं काम, कहो तो ये निर्धन के।

६ अक्तूबर २०१४

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