कैलाश झा किंकर
जन्म- १२ जनवरी १९६२ को पर्रा
बेगूसराय में।
प्रकाशित कृतियाँ-
संदेश (काव्य संग्रह), दरकती ज़मीन (काव्य संग्रह) "चलो
पाठशाला" (बाल साहित्य), ‘जिंदगी में रंग हैं कई' सहित कई
कृतियाँ प्रकाशित, अंगिका भाषा में दो कृतियाँ प्रकाशित।
कौशिकी स्वाधीनता संदेश (वार्षिकी) का संपादन। आकाशवाणी एवं
दूरदर्शन पर रचनाऐं प्रसारित।
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कुण्डलिया
१
गढ़ना है फिर से हमें, सुन्दर, सुखद समाज।
आओ हम संकल्प लें, हिन्दुस्तानी आज।।
हिन्दुस्तानी आज, चलें संकल्प उठाने।
न्याय-नीति के संग, सुगमतर राह बनाने।
कह ‘किंकर' कविराय, जरूरी सबका पढ़ना।
खुद के अंदर झाँक, न्याय की मूरत गढ़ना।।
२
छोटी सी है जिन्दगी, बड़े बड़े हैं काम।
जो जितनी रफ्तार में, उनका उतना नाम।।
उनका उतना नाम, हुआ करता है जग में।
जो जितना संताप, झेलते रहते मग में।
कह ‘किंकर' कविराय, वही पाते हैं चोटी।
रचते बड़ा विधान, जोड़कर बातें छोटी।।
३
रोना धोना छोड़कर, हो जाओ तैयार।
आया है संकट अगर, खूब करो प्रतिकार।।
खूब करो प्रतिकार, नहीं चुप बैठो थककर।
अधिकारों की माँग, करो आया है अवसर।
कह ‘किंकर' कविराय, नहीं अब हमको सोना।
होंगे हम निश्चिंत, बंद होगा जब रोना।।
४
नारी के सहयोग से, होता है उत्थान।
धरती से अम्बर तलक, नारी का गुणगान।।
नारी का गुणगान, किया करते हैं सज्जन।
आदर करते लोग, किया करते अभिनन्दन।
कह ‘किंकर' कविराय, निभाएँ दुनियादारी।
दौलत का भण्डार, जहाँ पूजित है नारी।।
५
हर भाई को मिल सके, हर भाई का प्यार।
हर आँगन के मध्य की, ढह जाए दीवार।।
ढह जाए दीवार, खुशी घर घर में छाए।
मिट जाए संदेह, सभी दूरी मिट जाए।
कह ‘किंकर' कविराय, न बन इतना सौदाई।
सुख वैभव बेकार, अगर बिखरे हों भाई।।
७ जुलाई २०१४ |