डॉ. उमेश
महादोषी
जन्म : लगभग पचास वर्ष पूर्व
उत्तर प्रदेश के जनपद एटा के एक छोटे से गावं दौलपुरा में।
शिक्षा : कृषि अर्थशास्त्र में पी-एच० डी० एवं सी ऐ आई आई बी
कार्यक्षेत्र-
लगभग तेईस वर्षों तक एक राष्ट्रीयकृत बैंक में सेवा के बाद
जनवरी २००९ में प्रबंधक पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति ली।
संप्रति प्रबंधकीय शिक्षा में संलग्न एक कालेज में प्राध्यापक
एवं निदेशक के रूप में कार्यरत तथा साहित्यिक त्रैमासिक लघु
पत्रिका "अविराम" का संपादन। मुख्यतः नई कविता एवं क्षणिकाओं
के साथ साथ अन्य विधाओं में यदा-कदा लेखन।
प्रकाशित कृतियाँ-
-साहित्यिक गतिविधियाँ- १९९२-१९९३ तक निरंतर पत्र-पत्रिकाओं
में प्रकाशन, उसी दौरान "नई कविता" एवं "क्षणिका" पर कुछ
प्रकाशनों का सम्पादन। आगरा की तत्कालीन बहुचर्चित संस्था
"शारदा साहित्य एवं ललित कला मंच" से जुड़कर साहित्यिक
कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाई। वर्ष १९९२-९३ के बाद
से लम्बे साहित्यिक विश्राम के बाद २००९ में फिर से साहित्यिक
दुनिया में लौटने की कोशिश के साथ वर्ष २०१० में समग्र साहित्य
की लघु पत्रिका के रूप में "अविराम" का पुनर्प्रकाशन एवं
संपादन प्रारंभ किया।
ईमेल-
umeshmahadoshi@gmail.com
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कुछ क्षणिकाएँ
१
झोटा रे झोटा
सुन भैंस के ढोटा
उनके भरे गुदाम
लेकिन
तेरा अपना खाली कुठला
थोड़ी-सी अकल काम ले
अब तो मेरे भाई!
पकी फसल की मेंढ़ों पर
सींग उठाकर डट जा
२
क्या खूब कहानी है
इस सिंहासन की
इस पर बैठने वाला हर राजा
हमारी मुक्ति की
बात करता है
और
इसके पाये रखे रहते हैं--
हमारे सीनों पर
३
गँगू की आँख में
सरसों उगी
और मस्तक में
कोल्हू चला
पर लटकाकर उल्टा
उसके भाग्य को छत से
तेल सारा राजा भोज पी गया
४
जब कभी मैंने
किसी पत्ते पर बैठकर
कोई नदी पार की है
मेरा वजन बढ गया है
और पत्ता/ मेरे लिए नाव बन गया है
५
खुदा! लगने लगा है
तेरी पदचाप से बेहद डर
मत आया कर अब
तू मेरे घर
रिसने दे मुझे
बनकर स्याही मेरी कलम से
तेरी तूलिका से छिटक गया है
मेरा मन!
६
जितना
उन्होंने लिखा-
वह तोड़ती पत्थर
उतना और
तुम बन गये/ पत्थर
वह/ आज भी
है तोड़ती पत्थर!
२२ नवंबर २०१० |