सोनल रस्तोगी
सोलन रस्तोगी
पिछले कुछ सालों से अपनी रचनाएँ
कुछ कहानियाँ
कुछ नज्में नामक अपने चिट्ठे पर प्रकाशित करती रही हैं।
अनुभूति में ये उनकी पहली रचनाएँ हैं।
ईमेल-
sonras1@yahoo.com |
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क्षणिकाएँ
(१)
किसी का खरीदूँ
अपना बेच दूं
ज़मीर का सौदा
इतना आसान है क्या
(२)
एक का दर्द
दूजे का तमाशा है
लोकतंत्र की
यही भाषा है
(३ )
हाँथ रख कर माथे पर
ताप क्यों देखते हो
मेरी आँखों में देखो
भाप की बूंदे उभर आई है
(४)
आशाओं और उम्मीदों से
ज़िंदा हूँ मैं
वो समझते है
साँसों का चलना ज़िन्दगी है
(५)
भीड़तंत्र से लोकतंत्र
भाड़ेतंत्र से लोकतंत्र
भ्रष्टतंत्र से लोकतंत्र
अब होंगे हम स्वतंत्र
७ नवंबर २०११ |